चित्रकूट के थरपहाड़ गांव की विदारक स्थिति, सड़क न होने से मरीजों को झोली में लादकर अस्पताल ले जाने पर मजबूर
अनमोल मिश्रा, सतना। आजादी के 78 साल बाद भी कुछ गांव ऐसे हैं जहां की जिंदगी अब भी संघर्ष और बेबसी

चित्रकूट के थरपहाड़ गांव की विदारक स्थिति: सड़क न होने से मरीजों को झोली में लादकर अस्पताल ले जाने पर मजबूर
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अनमोल मिश्रा, सतना। कम शब्दों में कहें तो आजादी के 78 साल बाद भी भारत के कुछ गांवों में जीवन संघर्ष और बेबसी का सामना कर रहा है। मध्य प्रदेश के चित्रकूट नगर पंचायत क्षेत्र के वार्ड क्रमांक 15 में स्थित थर पहाड़ गांव इसी सबकी जिंदा मिसाल है। यहां सड़क न होने के कारण लोग आज भी मरीजों को झोली में लादकर या कंधों पर उठाकर अस्पताल पहुंचाने को मजबूर हैं।
कच्ची सड़कों का सामना: मरीजों की आपातकालीन स्थिति
हाल ही में इस गांव की बुजुर्ग महिला राजकली, पत्नी स्व. रमेश्वर सिंह की तबीयत अचानक बिगड़ गई। सड़क न होने के कारण एंबुलेंस उनके घर तक नहीं पहुंच सकी, जिसके फलस्वरूप उनके नाती महेंद्र सिंह ने उन्हें कई किलोमीटर तक कंधे पर लादकर अस्पताल पहुंचाया। इस रास्ते की कठिनाई इतनी ज्यादा थी कि प्रत्येक कदम पर जान का खतरा बना रहता है। लेकिन दिल की मजबूरी ने महेंद्र को यह जोखिम उठाने को मजबूर कर दिया।
प्रसव के समय की विपरीत परिस्थितियाँ
गांव की शोभा मवासी को जब प्रसव पीड़ा हुई तो उनके लिए स्थिति और भी विकट हो गई। एम्बुलेंस की अनुपस्थिति में, परिजनों ने उन्हें कपड़े की झोली में डालकर अस्पताल तक ले जाने का कठिन फैसला किया। यह दृश्य केवल एक फिल्म का नहीं, बल्कि हमारे सिस्टम की असलियत बयां करता है। यह स्थिति न केवल गांववालों की बेबसी दर्शाती है, बल्कि विकास की धारा से वंचित इस गांव की वास्तविकता को भी उजागर करती है।
अधिकारियों की उम्मीदें और ग्रामीणों का संघर्ष
गांववाले बताते हैं कि उन्होंने कई बार कलेक्टर और अन्य अधिकारियों से गुहार लगाई है। कलेक्टर ने खुद गांव का निरीक्षण कर शीघ्र समाधान का आश्वासन दिया था, लेकिन महीनों बाद भी स्थिति जस की तस बनी हुई है। ग्रामीण अब केवल आश्वासन नहीं, बल्कि ठोस समाधान चाहते हैं। यह स्थिति न केवल स्वास्थ्य सेवाओं के लिए, बल्कि सामान्य जीवन के लिए भी एक बड़ी बाधा है।
अन्य सुविधाओं की कमी
थर पहाड़ गांव सिर्फ सड़क न होने की समस्या से ग्रस्त नहीं है, बल्कि स्वास्थ्य केंद्र, पीने का पानी और शौचालय जैसी बुनियादी सुविधाओं की भी कमी है। यहां के लोगों की रोजमर्रा की जिंदगी एक जंग जैसी है, जहां हर दिन किसी न किसी चुनौती का सामना करना पड़ता है। जब तक बुनियादी अवसंरचना का विकास नहीं होता, तब तक यह गांव केवल आधुनिकीकरण का सपना देख सकता है।
निष्कर्ष
चित्रकूट के थर पहाड़ गांव की इस जटिल स्थिति को देखकर उन अधिकारियों को जागरूक होना चाहिए जो विकास की बातें करते हैं। सड़कें, स्वास्थ्य सुविधाएँ, और अन्य बुनियादी सेवाएँ इन लोगों की दैनिक ज़िंदगी को काफी सरल बना सकती हैं। शायद अब समय आ गया है कि सिर्फ आश्वासन नहीं, बल्कि ठोस कदम उठाए जाएं।
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