आदिवासी समुदाय ने बांस के टावर से दिखाया पानी संकट का समाधान, प्रशासन की जिम्मेदारी पर सवाल

प्रमोद निर्मल, मोहला- मानपुर। जिले के आदिवासी बहुल मानपुर अंचल में फिर से जुगाड़ का नायाब नमूना देखने को मिला

आदिवासी समुदाय ने बांस के टावर से दिखाया पानी संकट का समाधान, प्रशासन की जिम्मेदारी पर सवाल
प्रमोद निर्मल, मोहला- मानपुर। जिले के आदिवासी बहुल मानपुर अंचल में फिर से जुगाड़ का नायाब नमूना द�

आदिवासी समुदाय ने बांस के टावर से दिखाया पानी संकट का समाधान, प्रशासन की जिम्मेदारी पर सवाल

प्रमोद निर्मल, मोहला- मानपुर। जिले के आदिवासी बहुल मानपुर अंचल में एक बार फिर अद्भुत जुगाड़ की मिसाल देखने को मिली है। इस बार क्षेत्र के ग्रामीणों ने पेयजल संकट से निपटने के लिए बांस और बल्लियों से एक पानी का टावर तैयार किया है, जिसकी मदद से अब उन्हें शुद्ध पेयजल प्राप्त हो सकेगा। हाल के दिनों में यह प्रयास काफी चर्चित हो रहा है और इससे पहले ग्रामीणों ने आवागमन को सुगम बनाने के लिए भी बांस और बल्लियों से पुल का निर्माण किया था। इस पुल की खबर भी जल्द ही लोगों के बीच आई थी।

देसी तकनीक से बनी पानी की व्यवस्था

हाल के दिनों में मानपुर के खुर्सेखुर्द गांव के लोगों ने एक अनोखी तकनीक का इस्तेमाल किया है। स्थानीय निवासियों का कहना है कि जल जीवन मिशन के तहत गांव में अब तक नल-जल की सुविधा उपलब्ध नहीं हो पाई है। उनकी निर्भरता अब केवल हैंडपंप पर है। लेकिन, हैंडपंप खराब होने पर पानी की किल्लत होना एक आम बात है।

इस बाधा को दूर करने के लिए, स्थानीय लोगों ने एक हैंडपंप को बिजली से जोड़ा है और इसके किनारे बांस और बल्लियों से एक टावर बनाया है। इस टावर पर दो टंकियां स्थापित की गई हैं, जिनसे पानी को पाइप के माध्यम से सप्लाई की जाती है। इस प्रणाली के तहत नल लगाकर ग्रामीण अपने उपयोग के लिए पानी प्राप्त कर सकते हैं।

जल जीवन मिशन और ग्रामीणों की संघर्षशीलता

यह टावर सरकार द्वारा शुरू किए गए जल जीवन मिशन का एक बेहतरीन उदाहरण है, जिसमें हैंडपंप या बोरवेल से टैंक तक पानी पहुंचाने की प्रक्रिया को दिखाया गया है। लेकिन, सरकारी संगठन के उदासीनता के कारण लोगों को इसे अपने तरीके से बनाना पड़ा है। जब सरकार समय पर सुविधाएं नहीं देती, तब आदिवासी समुदाय अपनी समस्या का हल खुद निकालता है।

सफलता के बावजूद चुनौतियां

केंद्र सरकार ने हर घर में पेयजल पहुंचाने का जो आह्वान किया है, वह मोहला-मानपुर जिले में पूरी तरह से सफल नहीं हो सका है। इलाके के कई गांवों में जल जीवन मिशन का कार्य अधूरा है। जिससे ग्रामीणों को अपनी समस्या का समाधान खोजने के लिए देसी तकनीक का सहारा लेना पड़ा। ऐसे में यह समस्याएं केवल खुर्सीखुर्द गांव तक सीमित नहीं हैं, बल्कि यह पूरे देश की वास्तविकता का हिस्सा हैं।

प्रशासनिक जिम्मेदारी पर विचार

इस स्थिति के बीच एक महत्वपूर्ण सवाल खड़ा होता है कि क्या प्रशासन अपनी जिम्मेदारियों को समझेगा? अगर ग्रामीण अपने संसाधनों का सही उपयोग करके अपनी समस्याओं का समाधान कर रहे हैं, तो क्या यह नहीं दर्शाता कि सरकारी सुविधाएं उनकी आवश्यकताओं को पूरा नहीं कर पा रही हैं? यह समस्या केवल मोहला-मानपुर तक सीमित नहीं है, बल्कि हमारे देश के कई अन्य हिस्सों में भी मौजूद है।

निष्कर्ष

कुल मिलाकर, यह स्पष्ट है कि आदिवासी समुदाय ने अपनी मेहनत और सूझबूझ से पेयजल की उपलब्धता सुनिश्चित की है। उनकी मेहनत दर्शाती है कि यदि प्रशासन समय पर अपनी जिम्मेदारियां निभाए, तो ऐसे अद्भुत प्रयासों की आवश्यकता नहीं पड़ेगी। अब देखना यह है कि क्या प्रशासन इस समुदाय की समस्याओं की समुचित सुनवाई करेगा और उन्हें समाधान प्रदान करेगा।

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लेखक: टीम धर्मयुद्ध (साक्षी शर्मा)

Keywords:

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