भूधंसाव से बढ़ी चिंता, कमजोर पहाड़ी क्षेत्रों में खतरनाक स्थिति

बारिश से कमजोर हुईं पहाड़ की भू-आकृतियां… शुरू हुए भूधंसाव; इन जिलों में बढ़ी चिंता उत्तराखंड में जोशीमठ के बाद अब चमोली, गोपेश्वर, टिहरी, घनसाली, रुद्रप्रयाग में भूधंसाव ने चिंता बढ़ा दी है। भूगर्भ विज्ञानियों के मुताबिक, पहाड़ की जड़ों तक पानी अपने साथ मिट्टी ले जा रहा है। बारिश से पहाड़ की भू-आकृतियां कमजोर […] The post भूधंसाव का बढ़ा खतरा, पहाड़ों की कमजोर होती जमीन से बढ़ी चिंता appeared first on The Lifeline Today : हिंदी न्यूज़ पोर्टल.

भूधंसाव से बढ़ी चिंता, कमजोर पहाड़ी क्षेत्रों में खतरनाक स्थिति
बारिश से कमजोर हुईं पहाड़ की भू-आकृतियां… शुरू हुए भूधंसाव; इन जिलों में बढ़ी चिंता उत्तराखंड में

भूधंसाव से बढ़ी चिंता, कमजोर पहाड़ी क्षेत्रों में खतरनाक स्थिति

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कम शब्दों में कहें तो, उत्तराखंड के पहाड़ी क्षेत्रों में भूधंसाव का खतरा तेजी से बढ़ रहा है, जो हाल ही में भारी बारिश का परिणाम है। खासकर जोशीमठ के बाद, चमोली, गोपेश्वर, टिहरी, घनसाली और रुद्रप्रयाग में इस समस्या ने चिंता का विषय बना दिया है। भूगर्भ विज्ञानियों का कहना है कि बारिश के कारण पहाड़ों की भू-आकृतियों में भारी बदलाव आया है।

क्या है स्थिति?

हाल के दिनों में, भारी बारिश के चलते पहाड़ों की भू-आकृतियां कमजोर हो गई हैं। चमोली के नंदानगर से लेकर टिहरी जैसे कई स्थानों पर भूधंसाव की घटनाएं शुरू हो गई हैं। भूगर्भ वैज्ञानिकों के अनुसार, बारिश का पानी पहाड़ों की जड़ों तक पहुंचकर मिट्टी को अपने साथ भी ले जा रहा है, जिससे भूधंसाव की घटनाओं में वृद्धि हो रही है।

क्षेत्रीय प्रभाव

गोपेश्वर और टिहरी में भू-धंसाव और भूस्खलन की घटनाएं लगातार बढ़ रही हैं। गोपेश्वर में क्यूंजा घाटी के किणझाणी गांव के निचले हिस्से में खेतों में दरारें पड़ गईं हैं। वहीं, घनसाली के भिलंगना ब्लॉक में मिट्टी धंसने से कई मकानों में दरारें आ गई हैं। इससे स्थानीय निवासियों में भय का माहौल बन गया है।

भूगर्भ विज्ञानीयों की राय

गढ़वाल विश्वविद्यालय के भूगर्भ विज्ञान विभाग के प्रोफेसर वाईपी सुंद्रियाल के अनुसार, पहाड़ी क्षेत्रों में तीन तरह की भू-आकृतियां पाई जाती हैं। इनमें से एक नदी-नाले के मलबे पर बनी होती है, दूसरी ग्लेशियर के कारण आई आपदा के मलबे से बनती है और तीसरी गुरुत्वाकर्षण के माध्यम से। वे यह भी बताते हैं कि भारी बारिश के चलते मिट्टी के नीचे मौजूद मलबा तेजी से नीचे जा रहा है और इससे भूधंसाव की गतिविधियों में वृद्धि हो रही है।

जलवायु परिवर्तन का प्रभाव

भूगर्भीय अध्ययन से पता चला है कि प्रदेश के ऊंचे क्षेत्रों का तापमान प्रति दशक 0.3 डिग्री बढ़ रहा है, जिससे ग्लेशियर तेजी से पिघल रहे हैं। इस गंभीर स्थिति में, नदियों का भी रुख मुड़ रहा है, जिससे नीचे कटाव और भूधंसाव के मामलों में वृद्धि हो रही है।

मौसमी बदलाव

विशेषज्ञ बताते हैं कि वेस्टर्न हिमालय में तीन तरह की हवाएं मिलकर कम दबाव का क्षेत्र बना रही हैं। इन हवाओं के मिलने से भारी बारिश और बर्फबारी जैसी घटनाओं में वृद्धि हो रही है। इस प्रकार, मानसून के मौसम में आने वाले बदलाव निश्चित रूप से चिंताजनक हैं।

आवश्यक कदम

भूगर्भ विज्ञानियों का सुझाव है कि यदि हमें इन समस्याओं से निपटना है, तो हमें वैज्ञानिक तरीके से विकास की गतिविधियां लागू करने की आवश्यकता है। स्थानीय स्तर पर सावधानी और उचित प्रबंधन से ही भूधंसाव के खतरों को कम किया जा सकता है।

इसके अलावा, मौसम विज्ञानियों ने आशंका जताई है कि इस वर्ष, दक्षिण पूर्वी हवाओं के प्रभाव के कारण, भारी बारिश की संभावनाएं बढ़ गई हैं। इस स्थिति का सही समाधान ढूंढने के लिए सभी संबंधित पक्षों को मिलकर काम करना होगा।

भूधंसाव की बढ़ती घटनाएं न केवल स्थानीय निवासियों की सुरक्षा को प्रभावित कर रही हैं, बल्कि उनके जीवन और संपत्ति को भी खतरे में डाल रही हैं। इस प्रकार, हमें इस मुद्दे की गंभीरता को समझते हुए सक्रिय कदम उठाने की आवश्यकता है।

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सादर,
टीम धर्म युद्ध, निकिता शर्मा