आचार्य श्री का संदेश: दिखावे की बजाय आंतरिकता में जीना चाहिए

देहरादून। परम पूज्य संस्कार प्रणेता ज्ञानयोगी जीवन आशा हॉस्पिटल प्रेरणा स्तोत्र उत्तराखंड के राजकीय अतिथि आचार्य श्री 108 सौरभ सागर जी महामुनिराज के मंगल सानिध्य में आज प्रातः 6.15 बजे से जिनेन्द्र भगवान का अभिषेक कर शांतिधारा की गयी। इसके पश्चात संगीतमय कल्याण मंदिर विधान का आयोजन किया गया। विधान मे उपस्थित भक्तो ने बड़े […] The post हमें दिखावे में नहीं जीना चाहिए : आचार्य श्री appeared first on The Lifeline Today : हिंदी न्यूज़ पोर्टल.

आचार्य श्री का संदेश: दिखावे की बजाय आंतरिकता में जीना चाहिए
देहरादून। परम पूज्य संस्कार प्रणेता ज्ञानयोगी जीवन आशा हॉस्पिटल प्रेरणा स्तोत्र उत्तराखंड के �

आचार्य श्री का संदेश: दिखावे की बजाय आंतरिकता में जीना चाहिए

Breaking News, Daily Updates & Exclusive Stories - Dharm Yuddh

देहरादून। परम पूज्य संस्कार प्रणेता ज्ञानयोगी जीवन आशा हॉस्पिटल प्रेरणा स्तोत्र उत्तराखंड के राजकीय अतिथि आचार्य श्री 108 सौरभ सागर जी महामुनिराज के मंगल सानिध्य में आज प्रातः 6.15 बजे जिनेन्द्र भगवान का अभिषेक करके शांतिधारा का आयोजन किया गया। इसके बाद संगीतमय कल्याण मंदिर में विधान का कार्यक्रम आयोजित किया गया। इस विशेष अवसर पर पहुंचे भक्तों ने 23वें तीर्थंकर चिंतामणि भगवान पार्श्वनाथ की आराधना बड़े भक्ति भाव के साथ की। इस विधान के पुण्यार्जक श्री सुखमाल चंद जैन, रचना जैन (नेहरू कॉलोनी) और श्री आशीष जैन, अनुपमा जैन (हज़ारा मेटल मार्ट) रहे।

भक्ति का महत्व और सिद्धांत

इस अवसर पर आचार्य श्री ने भक्तों को यह महत्वपूर्ण संदेश दिया कि आराधना का मार्ग और उसके तरीके हमें आचार्यों ने बताए हैं, हमें केवल अपने भीतर आस्था और भाव का निर्माण करने की आवश्यकता है। भक्ति का सफर व्यक्ति के निर्मल स्वभाव से शुरू होता है। पूजा के लिए धर्म, वस्तु या पात्र की आवश्यकता नहीं होती; बल्कि इसका संबंध आपके भाव से है। जब इंसान अपनी स्थिति को समझता है तो वह गलत रास्ते पर नहीं जाता।

नीति और भगवान की दृष्टि

आचार्य श्री ने स्पष्ट किया, "जब मैं कहता हूं कि आज मेरा पुण्य उदय हुआ है, तो इसका अर्थ है कि मैं पूर्णता को प्राप्त कर चुका हूं। हमें दिखावे की बजाय अपने इरादों पर ध्यान देना चाहिए, क्योंकि परमात्मा केवल हमारे इरादे को ही देखता है। एक अच्छी नीयत के साथ किए गए कार्य हमेशा सफल होते हैं।"

अन्य धार्मिक क्रियाकलाप

इस विधान में भक्ति के माध्यम से भक्तों ने भगवान पार्श्वनाथ के प्रति ध्यान और साधना की प्रेरणा प्राप्त की। आचार्य श्री ने सामाजिक समर्पण का महत्व बताते हुए भक्तों को वास्तविक जीवन के अर्थ के प्रति जागरूक किया और दिखावे के पीछे भागने की बजाय आंतरिकता की ओर ध्यान केंद्रित करने का मार्ग प्रशस्त किया।

सारांश

आचार्य श्री का यह संदेश आज के युग में विशेष महत्व रखता है, जहां दिखावे और भ्रामकता का बोलबाला है। हमें अपनी जीवनशैली को सच्चाई और स्वाभाविकता के पक्ष में ढालना चाहिए। आचार्य के विचार हमें यह सिखाते हैं कि जीवन केवल अपने लिए नहीं, बल्कि समाज के कल्याण के लिए जीने का नाम है।

आचार्य श्री का यह विचार अनुशासन और गहराई में अन्वेषण का मार्ग प्रशस्त करता है। सही दिशा में चल कर हम अपने जीवन को सरल, सच्चा और उद्देश्यपूर्ण बना सकते हैं। इस सुंदर आयोजन में सभी भक्तों ने अपनी भक्ति अर्पित की और इसे सफल बनाने में योगदान दिया।

अधिक अपडेट के लिए, विजिट करें: dharmyuddh.com

Keywords:

spirituality, life lessons, Acharya Shri, self-improvement, devotion, inner peace, Jainism, religious ceremony, personal growth