जय संतोषी माँ से करवाचौथ तक: जनसंचार माध्यमों में परिवर्तन और आस्था का विकास
1975 का वर्ष भारतीय सिनेमा के इतिहास में एक अनूठा अध्याय लेकर आया। विजय शर्मा के निर्देशन में बनी फ़िल्म “जय संतोषी माँ” ने न केवल धार्मिक फ़िल्मों की परंपरा को नया आयाम दिया, बल्कि जनसंचार माध्यमों की शक्ति को भी सजीव रूप में सामने रखा। यह फ़िल्म उस दौर में बनी थी जब टेलीविज़न […] The post जय संतोषी माँ से करवाचौथ तक — जनसंचार माध्यमों का बदलता स्वरूप और जनआस्था का विस्तार appeared first on Creative News Express | CNE News.
जय संतोषी माँ से करवाचौथ तक: जनसंचार माध्यमों में परिवर्तन और आस्था का विकास
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कम शब्दों में कहें तो, 1975 में भारतीय सिनेमा की फ़िल्म "जय संतोषी माँ" ने जनसंचार के तरीकों और धार्मिक आस्थाओं को एक नया मोड़ दिया। यह फ़िल्म न केवल धार्मिक फ़िल्मों की परंपरा को मजबूती प्रदान करती है बल्कि वह समय परिदृश्य को भी उजागर करती है जब टेलीविज़न की नई लहर भारतीय जनमानस में प्रवेश कर रही थी।
1975: एक महत्वपूर्ण मोड़
1975 का वर्ष भारतीय सिनेमा के लिए विशेष महत्व रखता है। विजय शर्मा द्वारा निर्देशित "जय संतोषी माँ" ने न केवल धार्मिक फ़िल्मों का दरवाजा खोला बल्कि सिनेमा की व्यापकता को भी दर्शाया। उस समय, कई लोग टेलीविज़न के साथ अपने अनुभव बढ़ा रहे थे और फ़िल्म ने इस प्रक्रिया को सक्रिय रूप से समर्थन दिया। इस फ़िल्म ने दर्शकों के बीच धार्मिक आस्था और सांस्कृतिक मूल्यों को उजागर किया।
जनसंचार माध्यमों का विस्तार
"जय संतोषी माँ" एक ऐसी फ़िल्म थी जिसने न केवल दर्शकों को मनोरंजन दिया, बल्कि विषयों और दृष्टिकोणों की विविधता को भी पेश किया। इस फ़िल्म ने टेलीविज़न से जुड़े नए युग को प्रमोट किया। इसके माध्यम से धार्मिक आस्थाओं की गहराई और विविधता को समझा जा सका। फ़िल्म ने जनसंचार माध्यमों की शक्ति को भी समझाते हुए, यह बताया कि कैसे समाज में बदलाव लाने के लिए ये माध्यम सहायक हो सकते हैं।
करवाचौथ: एक सांस्कृतिक पर्व के रूप में
आस्था का एक अद्भुत उदाहरण 'करवाचौथ' है। इस दिन महिलाएं अपने पतियों की लंबी उम्र के लिए उपवास रखती हैं और इस पर्व को मनाने की परंपरा भी जनसंचार माध्यमों के प्रभाव से बढ़ी है। हर साल ये पर्व टीवी धारावाहिकों और सोशल मीडिया के माध्यम से और अधिक लोकप्रिय होता जा रहा है, जहाँ परिवार के सदस्य एक साथ इसे मनाते हैं।
नए माध्यमों का प्रभाव
आजकल, ट्विटर, फेसबुक, और इंस्टाग्राम जैसे प्लेटफॉर्म जनसंचार और आस्था के लिए नए माध्यम बन गए हैं। ये माध्यम युवाओं और नई पीढ़ी को अपने सांस्कृतिक मूल्यों और परंपराओं के प्रति जागरूक करने का भी काम कर रहे हैं। प्रतिस्पर्धा के इस युग में, सामाजिक मीडिया ने धार्मिकता को मनोरंजन के साथ जोड़ने का सफल प्रयास किया है।
निष्कर्ष
इस प्रकार हम देख सकते हैं कि "जय संतोषी माँ" से लेकर वर्तमान समय तक जनसंचार माध्यमों में कितना वृद्धि हुआ है। धर्म और आस्था के प्रसार में फ़िल्मों और टेलीविज़न ने महत्वपूर्ण योगदान दिया है। यह न केवल धार्मिक फ़िल्मों की परंपराओं को आगे बढ़ा रहा है, बल्कि हमारे समाज में विविधता और धरोहरों को भी उजागर कर रहा है।
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सादर,
टीम धर्म युद्ध
स्मिता शर्मा