‘पत्नी की जीवनशैली की आदतें और भरण-पोषण का अधिकार: Bombay High Court का ऐतिहासिक फैसला’
हाल ही में बॉम्बे हाई कोर्ट ने एक अहम फैसला सुनाते हुए कहा है कि सिर्फ इसलिए कि पत्नी कमाती

‘पत्नी की जीवनशैली की आदतें और भरण-पोषण का अधिकार: Bombay High Court का ऐतिहासिक फैसला’
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कम शब्दों में कहें तो, हाल ही में बॉम्बे हाई कोर्ट ने एक महत्वपूर्ण निर्णय सुनाया है, जिसमें यह स्पष्ट किया गया कि यदि पत्नी कमाई भी कर रही है, तब भी उसे पति से भरण-पोषण (Maintenance) प्राप्त करने का अधिकार है। कोर्ट ने इस मामले में कहा कि विवाह के दौरान पत्नी की जीवनशैली को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता, जिसने उसे भरण-पोषण की आवश्यकता के मामलों में अनुदानित किया था। यह सुनवाई मुंबई के बांद्रा फैमिली कोर्ट के निर्णय को चुनौती देने संबंधी थी, जहां अप्रैल 2023 में पति को आदेश दिया गया था कि वह भाई-भाभी को हर महीने 15,000 रुपये की भरण-पोषण राशि प्रदान करे।
हाईकोर्ट की परिभाषा
न्यायमूर्ति मंजूषा देशपांडे की एकल बेंच ने इस मामले में कहा कि, “सिर्फ इसलिए कि पत्नी शारीरिक रूप से काम कर रही है, उसे अपने जीवनस्तर से वंचित नहीं किया जा सकता। विशेष रूप से तब, जब उसकी आय स्वतंत्र जीवनयापन के लिए पर्याप्त नहीं है।” अदालत ने यह संकेत दिया कि महिला एक कॉन्वेंट स्कूल में सहायक शिक्षिका के रूप में कार्यरत है, जिसकी मासिक आय 18,000 रुपये है, जबकि पति की मासिक आय 1 लाख रुपये से अधिक है।
पति पर वित्तीय स्थिति छिपाने का आरोप
अदालत ने यह भी पाया कि पति ने अपनी वास्तविक आय को छिपाया और अपनी संपत्ति, देनदारियों और संगठनों की जानकारी देने में असफल रहा। खासकर यह ध्यान में रखते हुए कि पति पर कोई बड़ी वित्तीय जिम्मेदारी नहीं थी, जबकि पत्नी को अपनी कमाई के कारण भाई के घर अपने माता-पिता के साथ रहना पड़ा। कोर्ट ने उस स्थिति को भी महत्व दिया जहां पत्नी की कमाई इतनी कम है कि वह स्वतंत्र रूप से जीवनयापन नहीं कर सकती।
यह निर्णय न्यायिक दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण साबित हो रहा है, जहां मामूली कमाई के आधार पर पत्नियों को भरण-पोषण से वंचित करने का प्रयास किया जाता है। यह दिखाता है कि विवाह में आर्थिक समानता का अधिकार एक महत्वपूर्ण तत्व है जो निर्णय लेने में अहम भूमिका निभाता है।
महिलाओं के अधिकारों की रक्षा
इस फैसले ने महिलाओं के आर्थिक अधिकारों की सुरक्षा को पुनः पुष्टि की है। सही जीवनसाथी के साथ विवाह में, एक व्यक्ति दूसरे के जीवन की गुणवत्ता का ध्यान रखता है। जब पत्नी भी कमाती है, तो उसे उसी जीवनशैली का अधिकार है जिसमें वह पहले आदी थी। यह न्याय भी है, जो महिलाओं की स्थिति को मजबूती प्रदान करता है और समाज में समानता को बढ़ावा देता है।
भविष्य की दिशा
बॉम्बे हाई कोर्ट का यह फैसला न केवल विवाह की मूल भावना को बदलने के लिए है बल्कि यह समाज में महिलाओं की परिस्थितियों पर भी नकारात्मक प्रभाव डालने के सिद्धांतों को चुनौती देता है। आशा है कि अन्य न्यायालय भी इस प्रकार के मामलों में समान दृष्टिकोण अपनाएंगे और महिलाओं के अधिकारों को बढ़ावा देंगे।
महिलाएं अब अपने अधिकारों के प्रति अधिक जागरूक हो रही हैं, और यह निर्णय उनके लिए एक ताकत बन गया है। यदि आपके पास इस मामले में कोई और जानकारी चाहिए, तो अधिक अपडेट्स के लिए [धर्म युद्ध](https://dharmyuddh.com) पर जाएं।