‘जिस जीवनशैली की आदत पत्नी को थी, उससे उसे वंचित नहीं किया जा सकता..’ कमाऊ पत्नी को भी पति से मिलेगी भरण-पोषण राशि; HC का बड़ा फैसला
हाल ही में बॉम्बे हाई कोर्ट ने एक अहम फैसला सुनाते हुए कहा है कि सिर्फ इसलिए कि पत्नी कमाती

‘जिस जीवनशैली की आदत पत्नी को थी, उससे उसे वंचित नहीं किया जा सकता..’ कमाऊ पत्नी को भी पति से मिलेगी भरण-पोषण राशि; HC का बड़ा फैसला
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हाल ही में बॉम्बे हाई कोर्ट ने एक अहम फैसला सुनाते हुए कहा है कि सिर्फ इसलिए कि पत्नी कमाती है, उसे पति से भरण-पोषण (Maintenance) नहीं मिलेगा। यह सोच न्यायसंगत नहीं है। अदालत ने कहा कि विवाह के दौरान जिस जीवनशैली की आदत पत्नी को थी, उससे उसे वंचित नहीं किया जा सकता, भले ही उसकी खुद की आय हो। यह मामला मुंबई के बांद्रा फैमिली कोर्ट के एक आदेश से जुड़ा है, जिसमें 2023 को एक पति को आदेश दिया गया था कि वह अपनी पत्नी को हर महीने 15,000 रूपये की भरण-पोषण राशि दे। इस फैसले को पति ने हाईकोर्ट में चुनौती दी थी।
हाईकोर्ट की साफ टिप्पणी
न्यायमूर्ति मंजूषा देशपांडे की सिंगल बेंच ने कहा, “केवल यह तथ्य कि पत्नी कमाई कर रही है, उसे पति की ओर से उचित भरण-पोषण से वंचित नहीं करता, खासकर जब उसकी आय स्वयं के खर्च के लिए भी पर्याप्त नहीं है।” उन्होंने यह भी कहा कि पत्नी एक कॉन्वेंट स्कूल में सहायक शिक्षिका के रूप में काम कर रही है और 18,000 रुपये प्रति माह कमाती है, जबकि पति की आय 1 लाख रुपये से अधिक है।
पति पर आय छुपाने का आरोप
अदालत ने पाया कि पति ने अपनी वास्तविक आय छुपाई थी। उसने अपनी संपत्ति और देनदारियों के बारे में पूरा विवरण नहीं दिया। इसके अलावा, पति पर कोई प्रमुख वित्तीय जिम्मेदारियां नहीं थीं, जबकि पत्नी को अपनी कम कमाई के चलते भाई के घर में माता-पिता के साथ रहना पड़ रहा था। कोर्ट ने कहा, “पत्नी की कमाई इतनी कम है कि वह स्वतंत्र रूप से जीवनयापन नहीं कर सकती। उसे मजबूरी में भाई के घर रहना पड़ रहा है, जो खुद उसके और उसके परिवार के लिए असुविधाजनक स्थिति है।”
यह फैसला उन मामलों के लिए एक न्यायिक मिसाल बनता है, जहां पत्नियों की मामूली कमाई को आधार बनाकर उन्हें भरण-पोषण से वंचित करने की कोशिश की जाती है। यह स्पष्ट करता है कि विवाह में आर्थिक समानता का अधिकार निर्णय लेने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।
महिलाओं के अधिकारों का संरक्षण
इस निर्णय को देखते हुए, यह स्पष्ट है कि महिलाओं के आर्थिक अधिकारों की रक्षा करना आवश्यक है। सही जोड़ीदार के साथ विवाह में, एक व्यक्ति दूसरे के जीवन की गुणवत्ता का ख्याल रखता है। यदि पत्नी भी कमाती है, तब भी उसे उसी जीवनशैली का अधिकार है, जिसमें वह पहले से रह रही थी। यह फैसले का न्याय है, जो महिलाओं की स्थिति को मजबूत करता है और समाज में समानता को बढ़ावा देता है।
आगे की राह
बॉम्बे हाई कोर्ट का यह निर्णय न केवल विवाह की अवधारणा को बदल रहा है, बल्कि समाज में महिलाओं की स्थितियों पर भी नकारात्मक प्रभाव डालने के सिद्धांत को चुनौती देता है। उम्मीद है कि अन्य न्यायालय भी इस प्रकार के मामलों में समान दृष्टिकोण अपनाएंगे।
महिलाएं अब अपने अधिकारों के प्रति और अधिक जागरूक हो रही हैं, और इस निर्णय से उनके लिए मजबूती बढ़ी है। अगर आपको इस संबंध में और जानकारी चाहिए, तो अधिक अपडेट्स के लिए [dharmyuddh.com](https://dharmyuddh.com) पर जाएं।