CJI गवई बोले- जज जमीनी हकीकत नजरअंदाज नहीं कर सकते:बार काउंसिल के इवेंट में कहा- न्यायपालिका का लोगों से दूरी बनाए रखना असरदार नहीं
सुप्रीम कोर्ट के नव-नियुक्त CJI बीआर गवई ने शनिवार को कहा कि जज जमीनी हकीकत को नजरअंदाज नहीं कर सकते हैं। वे बार काउंसिल ऑफ इंडिया (बीसीआई) के सम्मान समारोह में बोल रहे थे। इस दौरान CJI गवई ने सामाजिक वास्तविकताओं को समझने और उनका जवाब देने में जजों की भूमिका पर जोर दिया। CJI गवई ने कहा कि आज की न्यायपालिका मानवीय अनुभवों की जटिलताओं को नजरअंदाज करते हुए कानूनी मामलों को सख्त काले और सफेद शब्दों में देखने का जोखिम नहीं उठा सकती। सीजेआई ने इस बात पर जोर दिया कि न्यायपालिका में लोगों से दूरी रखना असरदार नहीं है। उन्होंने इस धारणा को खारिज कर दिया कि सुप्रीम कोर्ट के जजों को लोगों से जुड़ने से बचना चाहिए। पिता ने कहा था- जज बने तो बाबा साहब के दृष्टिकोण को आगे बढ़ा सकोगे CJI गवई ने जज का पद मिलने की अपनी शुरुआती हिचकिचाहट के बारे में भी बताया। उन्होंने बताया कि उनके पिता ने उनसे कहा था कि वकील के रूप में काम करना आर्थिक समृद्धि लाएगा, लेकिन संवैधानिक न्यायालय में जज के रूप में सेवा करने से उन्हें डॉ. बी आर अंबेडकर के सामाजिक और आर्थिक न्याय के दृष्टिकोण को आगे बढ़ाने का मौका मिलेगा। अपने पिता की सलाह मानते हुए CJI गवई ने हाईकोर्ट जज के रूप में अपने 22 साल के कार्यकाल और सुप्रीम कोर्ट जज के रूप में छह साल के कार्यकाल पर संतोष जताया। उन्होंने कहा कि इस दौरान उन्होंने हमेशा ज्यूडिशियल सिस्टम को अपना सर्वश्रेष्ठ देने का प्रयास किया है। CJI ने अपनी स्पीच में ये बातें भी कहीं... CJI बीआर गवई के सम्मान समारोह की तस्वीरें... जस्टिस गवई ने 1985 में कानूनी करियर शुरू किया जस्टिस गवई का 24 नवंबर 1960 को महाराष्ट्र के अमरावती में जन्म हुआ था। उन्होंने 1985 में कानूनी करियर शुरू किया। 1987 में बॉम्बे हाईकोर्ट में स्वतंत्र प्रैक्टिस शुरू की। इससे पहले उन्होंने पूर्व एडवोकेट जनरल और हाईकोर्ट जज स्वर्गीय राजा एस भोंसले के साथ काम किया। 1987 से 1990 तक बॉम्बे हाईकोर्ट में वकालत की। अगस्त 1992 से जुलाई 1993 तक बॉम्बे हाईकोर्ट की नागपुर बेंच में सहायक सरकारी वकील और एडिशनल पब्लिक प्रॉसीक्यूटर के रूप में नियुक्त हुए। 14 नवंबर 2003 को बॉम्बे हाईकोर्ट के एडिशनल जज के रूप में प्रमोट हुए। 12 नवंबर 2005 को बॉम्बे हाईकोर्ट के परमानेंट जज बने। दूसरे दलित CJI बने जस्टिस गवई, डिमॉनेटाइजेशन को सही बताया था जस्टिस गवई देश के दूसरे दलित CJI हैं। उनसे पहले जस्टिस केजी बालाकृष्णन भारत के मुख्य न्यायाधीश बने थे। जस्टिस बालाकृष्णन साल 2007 में सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस बने थे। सुप्रीम कोर्ट जज के रूप में जस्टिस गवई कई ऐतिहासिक फैसलों में शामिल रहे हैं। उनमें मोदी सरकार के 2016 के डिमॉनेटाइजेशन के फैसले को बरकरार रखना और चुनावी बॉण्ड योजना को असंवैधानिक घोषित करना शामिल है। जस्टिस गवई के बाद जस्टिस सूर्यकांत वरिष्ठता सूची में आते हैं। संभावना है कि उन्हें 53वां चीफ जस्टिस बनाया जाएगा। जस्टिस गवई से जुड़ी ये खबर भी पढ़ें... जस्टिस गवई का राजनीति में एंट्री से इनकार: बोले- रिटायरमेंट के बाद कोई पद नहीं लूंगा, देश खतरे में हो तो SC अलग नहीं रह सकता सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस बी.आर. गवई ने रिटायर होने के बाद पॉलिटिक्स में एंट्री लेने से इनकार किया। उन्होंने कहा- CJI के पद पर रहने के बाद व्यक्ति को कोई जिम्मेदारी नहीं लेनी चाहिए। रविवार को मीडिया से बातचीत के दौरान उन्होंने ये बात कही। उन्होंने कहा- 14 मई को बुद्ध पूर्णिमा के शुभ अवसर पर देश के CJI पद की शपथ लेना मेरे लिए बहुत सौभाग्य की बात है। पढ़ें पूरी खबर...

CJI गवई बोले- जज जमीनी हकीकत नजरअंदाज नहीं कर सकते
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सुप्रीम कोर्ट के नव-नियुक्त CJI बीआर गवई ने शनिवार को कहा कि जज जमीनी हकीकत को नजरअंदाज नहीं कर सकते हैं। वे बार काउंसिल ऑफ इंडिया (बीसीआई) के सम्मान समारोह में बोल रहे थे। इस दौरान CJI गवई ने सामाजिक वास्तविकताओं को समझने और उनका जवाब देने में जजों की भूमिका पर जोर दिया।
न्यायपालिका की भूमिका पर जोर
CJI गवई ने कहा कि आज की न्यायपालिका मानवीय अनुभवों की जटिलताओं को नजरअंदाज करते हुए कानूनी मामलों को सख्त काले और सफेद शब्दों में देखने का जोखिम नहीं उठा सकती। उन्होंने जोर देकर कहा कि न्यायपालिका में लोगों से दूरी रखना असरदार नहीं है। यह बात उन्होंने उस धारणा को खारिज करते हुए कही कि सुप्रीम कोर्ट के जजों को लोगों से जुड़ने से बचना चाहिए।
पिता की प्रेरणा और जीवनसाथी का समर्थन
CJI गवई ने अपने जज बनने की शुरुआती हिचकिचाहट को साझा करते हुए बताया कि उनके पिता ने उनसे कहा था कि यदि वे जज बने, तो वे डॉ. बी आर अंबेडकर के दृष्टिकोण को आगे बढ़ा सकेंगे। इसके चलते, उन्होंने हाईकोर्ट जज के रूप में अपने 22 वर्ष और सुप्रीम कोर्ट जज के रूप में छह साल के कार्यकाल को संतोषजनक बताया। उन्होंने कहा कि इस दौरान उन्होंने हमेशा ज्यूडिशियल सिस्टम को अपना सर्वश्रेष्ठ देने का प्रयास किया।
CJI गवई की अधिवक्ता यात्रा
जस्टिस गवई का जन्म 24 नवंबर 1960 को महाराष्ट्र के अमरावती में हुआ। उन्होंने 1985 में कानूनी करियर की शुरुआत की और 1987 में बॉम्बे हाईकोर्ट में स्वतंत्र प्रैक्टिस शुरू की। इसके बाद, उन्होंने कई महत्वपूर्ण भूमिकाएँ निभाईं, जैसे कि बॉम्बे हाईकोर्ट के एडिशनल जज के रूप में पदोन्नति और फिर परमानेंट जज बनना। उनका यह सफर CJI के रूप में कई ऐतिहासिक निर्णयों का हिस्सा रहा है।
देश के दूसरे दलित CJI
CJI गवई देश के दूसरे दलित CJI हैं। जस्टिस केजी बालाकृष्णन पहले दलित CJI थे। जस्टिस गवई ने महत्वपूर्ण निर्णय लिए हैं, जिसमें 2016 के डिमॉनेटाइजेशन के मोदी सरकार के निर्णय को बरकरार रखना और चुनावी बॉण्ड योजना को असंवैधानिक घोषित करना शामिल हैं।
राजनीति में एंट्री से इनकार
CJI गवई ने रिटायरमेंट के बाद राजनीति में एंट्री लेने से स्पष्ट रूप से इनकार किया। उन्होंने यह कहा कि CJI के पद पर रहने के बाद व्यक्ति को कोई जिम्मेदारी नहीं लेनी चाहिए। उन्होंने कहा कि उन्हें 14 मई को बुद्ध पूर्णिमा के अवसर पर CJI पद की शपथ लेना एक बड़ा सौभाग्य लगा।
निष्कर्ष
CJI गवई के विचार न केवल भारत की न्यायपालिका में एक नई दिशा सुझाते हैं, बल्कि यह भी दिखाते हैं कि समाज की जमीनी हकीकत से जजों का जुड़ाव कितना आवश्यक है। इससे न्यायपालिका की मानवीय दृष्टिकोण में सुधार करने की आवश्यकता और बढ़ जाती है।