दिल्ली हाईकोर्ट बोला- फीस नहीं देने पर धमका नहीं सकते:स्कूल सिर्फ कमाई का जरिया नहीं; DPS ने बाउंसर्स बुलाकर स्टूडेंट्स की एंट्री रोकी थी

दिल्ली हाईकोर्ट ने गुरुवार को फीस नहीं देने के कारण 31 स्टूडेंट्स को सस्पेंड करने के मामले में द्वारका के दिल्ली पब्लिक स्कूल को फटकार लगाई। जस्टिस सचिन दत्ता की सिंगल बेंच ने कहा कि स्कूल फीस नहीं देने पर बच्चों को धमकाया नहीं जा सकता। इस तरह की हरकतें मेंटल हैरेसमेंट के बराबर हैं और स्टूडेंट्स के आत्म-सम्मान को ठेस पहुंचाती है। न्यूज एजेंसी ANI के मुताबिक, कोर्ट ने कहा, 'स्कूल सिर्फ कमाई का जरिया नहीं है। इसका पहला मकसद बच्चों को शिक्षा देना और नैतिक मूल्यों को विकसित करना है, न कि एक कॉमर्शियल इंटरप्राइज के रूप में काम करना। भले ही स्कूल अपनी सेवाओं के लिए फीस लेता है, लेकिन उसे सिर्फ कॉमर्शियल संस्थान के बराबर नहीं माना जा सकता।' दरअसल, पूरा मामला दिल्ली के द्वारका स्थित DPS से जुड़ा है। 9 मई 2025 को DPS ने फीस न भरने पर 32 बच्चों के नाम काट दिए थे। 13 मई को जब ये बच्चे स्कूल पहुंचे, तो 4 मेल और दो फीमेल बाउंसर्स ने उनकी ID चेक की और उन्हें वापस भेज दिया। इन्हें घर भेजने से पहले पेरेंट्स को बताया भी नहीं गया। दिल्ली हाईकोर्ट की फटकार के बाद DPS ने 31 छात्रों को सस्पेंड करने का अपना फैसला वापस ले लिया है। जस्टिस दत्ता ने DPS द्वारका और पेरेंट्स से बच्चों के हितों को ध्यान में रखते हुए आपस में विवाद सुलझाने को कहा है। 15 मई 2025 को 102 पेरेंट्स ने दिल्ली हाईकोर्ट में याचिका दायर की थी। पेरेंट्स का आरोप- 5 सालों में फीस 50 हजार बढ़ाई पेरेंट्स का आरोप है कि DPS द्वारका ने डायरेक्टोरेट ऑफ एजुकेशन (DoE) की मंजूरी के बिना बीते 5 सालों में फीस ₹1,39,630 से बढ़ाकर करीब ₹1,90,000 कर दी है। जब पेरेंट्स ने इसका विरोध किया, तो स्कूल ने 32 बच्चों को निकाल दिया और गेट पर बाउंसर खड़े कर दिए। पेरेंट्स ने इसे कोर्ट और DoE के आदेशों की अवहेलना बताया। वहीं, DPS द्वारका ने स्कूल की आर्थिक तंगी का हवाला देते हुए कहा कि पेरेंट्स को बकाया फीस के बारे में बार-बार बताया गया था। स्कूल ने कहा कि लगातार विरोध प्रदर्शन और धमकियों के चलते बाउंसर्स को सुरक्षा के लिए तैनात किया गया था। जांच में बाउंसर्स तैनात करने वाली बात सही निकली शिक्षा विभाग ने 13 मई 2025 को DPS द्वारका का दौरा किया और पाया कि स्कूल ने बच्चों को क्लास में जाने से रोका और गेट पर बाउंसर तैनात किए हैं। DoE ने स्कूल को निकाले गए बच्चों को तुरंत बहाल करने और भेदभाव न करने का आदेश दिया। साथ ही स्कूल को 3 दिन में रिपोर्ट जमा करने को कहा। 11 स्कूलों को फीस बढ़ाने पर दिल्ली सरकार का नोटिस DPS में फीस बढ़ने का मामला सामने आने के बाद दिल्ली सरकार ने स्कूलों का ऑडिट किया। अप्रैल 2025 तक दिल्ली सरकार ने 600 निजी स्कूलों के फाइनेंशियल रिकॉर्ड का ऑडिट किया। 17 अप्रैल 2025 को दिल्ली के 11 स्कूलों को पिछले 10 सालों तक ऑडिट रिपोर्ट जमा न करने और गैर-कानूनी तरीके से फीस बढ़ाने के लिए कारण बताओ नोटिस जारी किया गया। इनमें DPS द्वारका भी शामिल है। इन स्कूलों पर 2024-25 सत्र के लिए फीस बढ़ाने का आरोप हैं। ये फीस DoE की मंजूरी के बिना बढ़ाई गई। पेरेंट्स का आरोप है कि दिल्ली सरकार की कार्रवाई धीमी है। दिल्ली में 1,677 मान्यता प्राप्त निजी स्कूल हैं, जिनमें अभी सिर्फ 600 का ऑडिट हुआ है। दिल्ली के स्कूलों से जुड़ी ये खबरें भी पढ़ें... स्कूल गेट पर मेल बाउंसर ने पकड़े बेटी के हाथ', पेरेंट्स बोले- बच्चों के नाम काटे, कोर्ट बोला- अमानवीय DPS द्वारका में फीस विवाद बढ़ने के बाद दैनिक भास्कर ने ग्राउंड रिपोर्ट की और जाना कि फीस को लेकर विवाद क्या है? इसके पीछे स्कूल की क्या दलील है? दिल्ली की BJP सरकार इस पर क्या एक्शन ले रही है? हमने उन पेंरेट्स से भी बात की, जिनके बच्चों को स्कूल से निकाला गया था। ​​​​​पूरी खबर पढ़ें... दिल्ली के स्कूल मनमानी फीस नहीं वसूल सकेंगे, फीस रेगुलेट करने के लिए बिल पास दिल्ली सरकार ने सरकारी और प्राइवेट स्कूलों में फीस रेगुलेट करने के लिए बिल पास कर दिया है। मुख्यमंत्री रेखा गुप्ता की अध्यक्षता में हुई मीटिंग में यह फैसला लिया गया है। मुख्यमंत्री ने कहा किदिल्ली सरकार ने ‘दिल्ली स्कूल एजुकेशन ट्रांसपेरेंसी इन फिक्सेशन एंड रेगुलेशन बिल 2025’ पास करके अहम और एतिहासिल फैसला लिया है। पूरी खबर पढ़ें...

दिल्ली हाईकोर्ट बोला- फीस नहीं देने पर धमका नहीं सकते:स्कूल सिर्फ कमाई का जरिया नहीं; DPS ने बाउंसर्स बुलाकर स्टूडेंट्स की एंट्री रोकी थी
दिल्ली हाईकोर्ट ने गुरुवार को फीस नहीं देने के कारण 31 स्टूडेंट्स को सस्पेंड करने के मामले में द्व�

दिल्ली हाईकोर्ट का महत्वपूर्ण फैसला: DPS स्कूल पर फीस विवाद

प्रस्तावना

दिल्ली हाईकोर्ट ने गुरुवार को एक महत्वपूर्ण आदेश जारी करते हुए दिल्ली पब्लिक स्कूल (DPS) द्वारका को फटकार लगाई है। कोर्ट ने यह कहा कि फीस न देने के कारण छात्रों को धमकाया नहीं जा सकता और ऐसा करना मानसिक प्रताड़ना के समान है। इस फैसले ने न केवल DPS की आजादी को सीमित किया है, बल्कि शिक्षा के लिए एक नैतिक दृष्टिकोण को भी उजागर किया है।

मामले का विवरण

जस्टिस सचिन दत्ता की सिंगल बेंच ने यह टिप्पणी की जब स्कूली प्रशासन ने फीस का भुगतान न करने पर 32 छात्रों को सस्पेंड कर दिया था। मामले की गंभीरता तब बढ़ गई जब स्कूल ने 13 मई को छात्रों की एंट्री को रोकने के लिए बाउंसर्स का सहारा लिया। ये बाउंसर्स छात्रों को गेट पर रोके हुए थे, बिना किसी सूचना के उनके माता-पिता को जानकारी दिए।

कोर्ट का रुख

दिल्ली हाईकोर्ट ने स्पष्ट किया कि स्कूल केवल एक कॉमर्शियल संस्थान नहीं है, बल्कि इसका प्राथमिक उद्देश्य शिक्षा देना और नैतिक मूल्यों का विकास करना है। कोर्ट ने DPS को आदेश दिया कि वे छात्रों के प्रति अपने व्यवहार में सुधार करें और उनके भविष्य का ध्यान रखें। 15 मई को 102 माता-पिता ने इस मामले में कोर्ट में याचिका दायर की थी।

माता-पिता के आरोप

माता-पिता का आरोप है कि DPS ने बिना किसी अनुमोदन के पिछले 5 वर्षों में शुल्क में भारी वृद्धि की है। फीस को ₹1,39,630 से बढ़ाकर ₹1,90,000 कर दिया गया था। जब पेरेंट्स ने इसका विरोध किया, तो स्कूल ने एक असामान्य तरीके से बच्चों को निकालने का प्रयास किया।

शिक्षा विभाग की जांच

शिक्षा विभाग ने DPS द्वारका का दौरा किया और पाया कि स्कूल छात्रों को क्लास में जाने से रोक रहा है। इसके परिणामस्वरूप, विभाग ने तुरंत स्कूल को निर्देश दिया कि निकाले गए छात्रों को बहाल किया जाए और कोई भी भेदभाव न किया जाए।

दिल्ली सरकार की कार्रवाई

दिल्ली सरकार ने अन्य स्कूलों के फाइनेंशियल रिकॉर्ड का ऑडिट किया और 11 स्कूलों को पिछले 10 वर्षों में गैर-कानूनी तरीके से फीस बढ़ाने के आरोप में नोटिस जारी किया। इसमें DPS भी शामिल है। यह कदम शिक्षा के क्षेत्र में पारदर्शिता बढ़ाने का बड़ा प्रयास है।

निष्कर्ष

दिल्ली हाईकोर्ट का यह फैसला शिक्षा क्षेत्र में एक नई दिशा दिखाता है। यह केवल दिल्ली पब्लिक स्कूल के लिए नहीं, बल्कि सभी शिक्षण संस्थानों के लिए एक महत्वपूर्ण संकेत है कि छात्रों को निम्न स्थिति में नहीं रखा जा सकता। इसके साथ ही, यह माता-पिता के अधिकारों की रक्षा करता है और यह सुनिश्चित करता है कि शिक्षा को वित्तीय लेन-देन के रूप में नहीं देखा जाए। इस मामले की नियंत्रित प्रतिक्रिया से यह स्पष्ट है कि शिक्षा मानवाधिकारों का एक अभिन्न हिस्सा है और इसे एक व्यवसाय के रूप में नहीं देखा जाना चाहिए।

इस महत्वपूर्ण फैसले के बाद, यह उम्मीद की जा सकती है कि अन्य स्कूल भी अपनी नीतियों में सुधार करेंगे और छात्रों की भलाई को प्राथमिकता देंगे।

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