दिल्ली दंगों के आरोपी की जमानत पर जज बंटे:अब 3 जज की बेंच सुनवाई करेगी, AIMIM कैंडिडेट ने दिल्ली चुनाव के लिए बेल मांगी
दिल्ली दंगों के आरोपी और विधानसभा चुनाव में AIMIM कैंडिडेट ताहिर हुसैन की जमानत याचिका पर सुप्रीम कोर्ट की दो जजों की बेंच में सहमति नहीं बन सकी। बुधवार को हुई सुनवाई में जस्टिस अहसानुद्दीन अमानुल्लाह ताहिर को जमानत देने के पक्ष में थे, जबकि जस्टिस पंकज मित्तल ने याचिका खारिज कर दी। अब 3 जजों की बेंच बेल पर सुनवाई करेगी। जस्टिस अहसानुद्दीन अमानुल्लाह ने कहा कि यह जीवन और स्वतंत्रता से जुड़ा मामला है, इसलिए रोज सुनवाई की जा रही है। उन्होंने अंतरिम जमानत देने का विरोध कर रही पुलिस से भी सवाल किए। जस्टिस पंकज मित्तल ने कहा कि ताहिर की याचिका स्वीकार करने पर एक नई प्रथा की शुरुआत हो जाएगी। विचाराधीन कैदी चुनाव में खड़े हो जाएंगे और चुनाव लड़ने या प्रचार के लिए अंतरिम जमानत की मांग करेंगे। सबूतों और गवाहों से छेड़छाड़ की भी संभावना है। 4 साल 9 महीने से जेल में बंद ताहिर हुसैन को दिल्ली विधानसभा चुनाव के लिए ओवैसी की पार्टी AIMIM ने मुस्तफाबाद से कैंडिडेट बनाया है। उन्होंने दिल्ली चुनाव लड़ने के लिए ही सुप्रीम कोर्ट में जमानत याचिका लगाई है। इससे पहले मामले पर 20 जनवरी को भी सुनवाई हुई थी। इसमें सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि जेल में बंद सभी लोगों को चुनाव लड़ने से रोका जाना चाहिए। इस पर ताहिर की ओर से पेश सीनियर एडवोकेट सिद्धार्थ अग्रवाल ने 21 जनवरी को कोर्ट से सुनवाई का अनुरोध किया था। तब जस्टिस मित्तल ने कहा था- अब तो जेल में बैठकर चुनाव लड़ते हैं। जेल में बैठकर चुनाव जीतना आसान है। इन सभी को चुनाव लड़ने से रोका जाना चाहिए। हाईकोर्ट ने नामांकन के लिए कस्टडी पैरोल दी थी ताहिर पर दिल्ली दंगों के दौरान 25 फरवरी 2020 को IB अधिकारी अंकित शर्मा की हत्या करने का आरोप है। ताहिर ने चुनाव प्रचार के लिए हाईकोर्ट से 14 जनवरी से 9 फरवरी तक अंतरिम जमानत मांगी थी। 13 जनवरी को हाईकोर्ट ने कहा था कि नामांकन जेल से भी भरा जा सकता है। इस पर ताहिर की वकील तारा नरूला ने तर्क दिया कि इंजीनियर रशीद को चुनाव प्रचार के लिए अंतरिम जमानत दी गई थी। उनके खिलाफ टेरर फंडिंग का भी मामला चल रहा है। ताहिर को एक राष्ट्रीय पार्टी ने उम्मीदवार बनाया है। वे अपनी सभी संपत्तियों का विवरण देने को तैयार हैं। उन्हें अपने लिए एक प्रस्तावक भी खोजना है और दिल्ली में चुनाव प्रक्रिया शुरू हो चुकी है। मामले में ट्रायल शुरू हो चुका है और अब तक 114 गवाहों में से 20 गवाहों से पूछताछ हो चुकी है। ऐसे में ट्रायल जल्द पूरी होने की उम्मीद नहीं है। ताहिर 4 साल 9 महीने से ज्यादा समय से हिरासत में है। हाईकोर्ट ने 14 जनवरी को ताहिर की कस्टडी पेरोल मंजूर की थी। 16 जनवरी को कड़ी सुरक्षा के बीच ताहिर तिहाड़ जेल से बाहर आए और नामांकन भरने के बाद वापस जेल चले गए थे। इसके बाद ताहिर जमानत के लिए सुप्रीम कोर्ट पहुंचे थे। दंगों में लाइसेंसी पिस्टल का इस्तेमाल का आरोप दिल्ली दंगा मामले में क्राइम ब्रांच ने कड़कड़डूमा कोर्ट में दो चार्जशीट दाखिल की थीं। पहला केस चांद बाग हिंसा और दूसरा मामला जाफराबाद दंगे से जुड़ा था। पुलिस ने चांद बाग हिंसा मामले में ताहिर हुसैन को मास्टरमाइंड बताया था। ताहिर के अलावा उनके भाई शाह आलम समेत 15 लोगों को आरोपी बनाया था। चार्जशीट में दिल्ली पुलिस ने कहा था कि हिंसा के वक्त ताहिर हुसैन अपने घर की छत पर था और उसकी वजह से ही हिंसा भड़की थी। ताहिर ने दंगे में अपनी लाइसेंसी पिस्टल का इस्तेमाल किया था। पुलिस के मुताबिक हुसैन ने दंगे से ठीक एक दिन पहले खजूरी खास पुलिस स्टेशन में जमा अपनी पिस्टल निकलवाई थी। जांच के दौरान पुलिस ने पिस्टल जब्त कर ली थी। ------------------------------------------ दिल्ली दंगों से जुड़ी ये खबर भी पढ़ें... 4 साल बाद भी 85% केस कोर्ट में अटके, आरोपी इशरत बोलीं- बिना सबूत मुझे देशद्रोही बनाया पार्षद रह चुकीं इशरत जहां 2020 के दिल्ली दंगे में हिंसा भड़काने की आरोपी हैं। आरोप तय हो गए हैं, लेकिन अभी जमानत पर हैं। इशरत से जुड़ा मामला 26 फरवरी, 2020 का है। तब दिल्ली के खजूरी खास में लोग प्रोटेस्ट के लिए जुटे थे। तभी हिंसा भड़क गई। पूरी खबर पढ़ें...
दिल्ली दंगों के आरोपी की जमानत पर जज बंटे
दिल्ली के हाईकोर्ट में चल रही सुनवाई में जमानत पर विचार करते समय जजों के बीच मतभेद उत्पन्न हो गए हैं। विशेष रूप से, AIMIM कैंडिडेट द्वारा चुनाव में भाग लेने के लिए बेल की मांग की गई है। यह मामला न्यायालय में महत्वपूर्ण चर्चा का विषय रहा है, जिससे राजनीतिक और सामाजिक प्रतिक्रिया भी उत्पन्न हुई है।
जमानत याचिका का महत्व
जमानत याचिका के संदर्भ में जजों के बीच विचार-विमर्श में बंटवारा यह दर्शाता है कि न्यायालय इस मामले को गंभीरता से ले रहा है। क्या आरोपी को जमानत दी जानी चाहिए या नहीं, यह प्रश्न वर्तमान में न केवल कानूनी बल्कि राजनीतिक भी बन गया है। जमानत मिलने से उस आरोपी को बहुत से अधिकार मिल सकते हैं जबकि इसके न मिलने से चुनावी प्रक्रिया पर भी प्रभाव पड़ सकता है।
AIMIM कैंडिडेट की स्थिति
AIMIM कैंडिडेट जो कि दिल्ली चुनाव में भाग लेना चाहता है, तुरंत जमानत प्राप्त करने का प्रयास कर रहा है। उसके जमानत याचिका की सुनवाई अब 3 जजों की बेंच द्वारा की जाएगी जो कि सुनिश्चित करेगा कि सभी पक्षों को समान रूप से सुना जाए। इस मामले की पूरी सुनवाई और जमानत का निर्णय आने वाले चुनावों पर महत्वपूर्ण प्रभाव डाल सकता है।
समाज में प्रभाव
दिल्ली दंगों के मामले में जमानत याचिका पर सुनवाई केवल कानूनी प्रक्रिया नहीं है बल्कि यह समाज में ध्रुवीकरण को भी उजागर करती है। राजनीतिक दल और उनके कार्यकर्ता इस मामले को अपनी राजनीतिक प्राथमिकताओं के अनुसार भुना रहे हैं।
निष्कर्ष
जमानत का यह मुद्दा अब न्यायालय में एक जटिल पेंच बन गया है। यह देखना दिलचस्प होगा कि अगले चरण में क्या निर्णय लिया जाता है और इसका दिल्ली चुनावों पर क्या प्रभाव पड़ेगा। अधिक अपडेट के लिए, कृपया News by dharmyuddh.com पर जाएं। Keywords: दिल्ली दंगों, जमानत याचिका, AIMIM कैंडिडेट, चुनावों के लिए बेल, जज बंटे, दिल्ली हाईकोर्ट, कानून और राजनीति, दंगा मामले, न्यायालय की सुनवाई, राजनीतिक प्रतिक्रिया.