सुप्रीम कोर्ट बोला- रिलेशनशिप टूटने के बाद रेप केस गलत:इससे आरोपी की छवि खराब होती है, न्याय व्यवस्था पर भी बोझ पड़ता है

सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को एक अहम फैसले में कहा, 'यदि दो वयस्कों में सहमति से बना रिश्ता बाद में टूट जाता है या दोनों के बीच दूरी आ जाती है, तो इसे शादी का झूठा वादा बताकर रेप का केस नहीं बनाया जा सकता।' जस्टिस बीवी नागरत्ना और जस्टिस सतीश चंद्र शर्मा की बेंच ने यह टिप्पणी की। बेंच ने कहा- ऐसे मामलों से न केवल न्याय व्यवस्था पर अनावश्यक बोझ पड़ता है, बल्कि आरोपी व्यक्ति की सामाजिक छवि को भी गंभीर नुकसान होता है। सुप्रीम कोर्ट ने दोहराया कि सिर्फ शादी का वादा तोड़ने को झूठा वादा नहीं माना जा सकता, जब तक कि आरोपी की तरफ से रिश्ते की शुरुआत से ही धोखाधड़ी का इरादा न हो। बेंच ने कहा कि शादी का वादा तोड़ने को झूठा वादा बताकर धारा 376 के तहत रेप का केस करना गलत है। इस सोच पर पहले भी चिंता जताई जा चुकी है। सुप्रीम कोर्ट ने इस फैसले के साथ ही महाराष्ट्र के अमोल भगवान नेहुल के खिलाफ रेप केस रद्द कर दिया। आरोपी नेहुल ने बॉम्बे हाईकोर्ट के उस आदेश को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी थी, जिसमें उस पर दर्ज आपराधिक कार्यवाही को रद्द करने से इनकार कर दिया गया था। सुप्रीम कोर्ट ने हाईकोर्ट का आदेश पलटते हुए आपराधिक कार्यवाही खत्म की। कोर्ट ने लिव इन के बाद रेप के आरोप को भी गलत बताया था इससे पहले सुप्रीम कोर्ट ने मार्च में एक मामले में कहा था कि 16 साल तक लिव इन रिलेशनशिप में रहने के बाद कोई महिला रेप का आरोप नहीं लगा सकती। सिर्फ शादी करने का वादा तोड़ने से रेप का मामला नहीं बनता, जब तक यह साबित न हो जाए कि शुरुआत से ही शादी की कोई मंशा नहीं थी। महिला ने 2022 में अपने पूर्व लिवइन पार्टनर पर रेप का केस दर्ज कराया था। उसका आरोप था कि 2006 में पार्टनर जबरदस्ती उसके घर में घुसा और उसके साथ शारीरिक संबंध बनाए। बाद में शादी का झांसा देकर 16 साल तक उसका शोषण किया। फिर किसी दूसरी महिला से शादी कर ली। कोर्ट बोला- पढ़ी-लिखी महिला इतने साल धोखे में कैसे रह सकती है जस्टिस विक्रम नाथ और जस्टिस संदीप मेहता की बेंच ने फैसला सुनाते हुए कहा कि अगर कोई महिला इतने समय तक रिश्ते में रहती है, तो इसे धोखा या जबरदस्ती नहीं कहा जा सकता है। यह मामला लिव इन रिलेशनशिप के बिगड़ने का है, न कि रेप का। कोर्ट ने सवाल उठाया कि एक पढ़ी-लिखी और आत्मनिर्भर महिला इतने सालों तक किसी के धोखे में कैसे रह सकती है। ऐसा कैसे हो सकता है कि जब अचानक उसका पार्टनर किसी और से शादी कर ले, तब केस दर्ज कराए। कोर्ट ने मामला खत्म करते हुए कहा कि केस जारी रखना कानूनी प्रक्रिया का दुरुपयोग होगा। ---------------------------------- रिलेशनशिप पर सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणी से जुड़ी ये खबर भी पढ़ें... सुप्रीम कोर्ट बोला- शादी विश्वास पर आधारित रिश्ता, इसका मकसद खुशी और सम्मान है, विवाद नहीं सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि शादी का रिश्ता आपसी भरोसे, साथ और साझा अनुभवों पर टिका होता है। अगर ये चीजें लंबे समय तक नहीं हों तो शादी सिर्फ कागजों पर रह जाती है। कोर्ट ने आगे कहा कि शादी का उद्देश्य दोनों की खुशी और सम्मान है, न कि तनाव और विवाद। पूरी खबर पढ़ें...

सुप्रीम कोर्ट बोला- रिलेशनशिप टूटने के बाद रेप केस गलत:इससे आरोपी की छवि खराब होती है, न्याय व्यवस्था पर भी बोझ पड़ता है
सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को एक अहम फैसले में कहा, 'यदि दो वयस्कों में सहमति से बना रिश्ता बाद में ट�

सुप्रीम कोर्ट बोला- रिलेशनशिप टूटने के बाद रेप केस गलत: इससे आरोपी की छवि खराब होती है, न्याय व्यवस्था पर भी बोझ पड़ता है

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सुप्रीम कोर्ट ने हाल ही में एक महत्वपूर्ण निर्णय लेते हुए कहा है कि यदि किसी संबंध में दो वयस्कों के बीच सहमति से बना रिश्ता टूटता है, तो इसे शादी का झूठा वादा बताकर रेप का मामला नहीं बनाया जा सकता। यह टिप्पणी जस्टिस बीवी नागरत्ना और जस्टिस सतीश चंद्र शर्मा की बेंच ने की। इस फैसले ने न्याय व्यवस्था की कार्यप्रणाली और आरोपी की सामाजिक छवि पर गहरे सवाल उठाए हैं।

सुप्रीम कोर्ट का अहम फैसला

बेंच ने कहा कि ऐसे मामलों से न्याय प्रणाली पर अनावश्यक बोझ पड़ता है। इसके साथ ही आरोपियों की सामाजिक छवि को गंभीर नुकसान भी होता है। कोर्ट ने स्पष्ट किया है कि केवल शादी का वादा तोड़ने को झूठा वादा नहीं माना जा सकता जब तक कि आरोपी ने रिश्ता शुरु करने से पहले धोखाधड़ी का इरादा न रखा हो।

इस मामले में सुप्रीम कोर्ट ने महाराष्ट्र के अमोल भगवान नेहुल के खिलाफ दायर रेप केस को रद्द कर दिया। नेहुल ने बॉम्बे हाईकोर्ट के उस आदेश को चुनौती दी थी, जिसने उसकी आपराधिक कार्यवाही को रद्द करने से इनकार कर दिया था। कोर्ट ने हाईकोर्ट का आदेश पलटते हुए आपराधिक कार्यवाही खत्म की।

लिव-इन रिलेशनशिप पर कोर्ट के विचार

हाल ही में सुप्रीम कोर्ट ने यह भी कहा था कि यदि कोई महिला 16 वर्ष तक लिव-इन रिलेशनशिप में रहती है, तो वह बाद में रेप का आरोप नहीं लगा सकती। जब तक यह साबित न हो जाए कि शुरुआत से ही शादी की कोई मंशा नहीं थी। इस संदर्भ में, एक महिला ने 2022 में अपने पूर्व लिव-इन पार्टनर पर रेप का केस दायर किया था।

कोर्ट ने इस महिला के आरोपों को गलत ठहराते हुए कहा कि पढ़ी-लिखी महिला इतने वर्षों तक धोखे में कैसे रह सकती है। कोर्ट ने यह भी कहा कि यदि कोई महिला इतने समय तक अपने रिश्ते में रहती है, तो इसे धोखा या जबरदस्ती नहीं कहा जा सकता।

न्यायपालिका की चिंता और समाज का जिम्मेदारी

सुप्रीम कोर्ट ने अपने प्रवचन के दौरान ये भी बताया कि विवाह एक विश्वास पर आधारित रिश्ता है, जिसका उद्देश्य खुशी और सम्मान है। कोर्ट ने कहा कि यदि इन मूल्यों का पालन नहीं किया जाता है, तो विवाह सिर्फ एक कागज रह जाता है।

इस प्रकार, इस निर्णय ने न केवल कानूनी दृष्टिकोण से बल्कि सामाजिक दृष्टिकोण से भी चर्चा का विषय बना दिया है। समाज में रिश्तों की समझ और उनकी जटिलताओं को समझना बेहद आवश्यक है।

निष्कर्ष

इस फैसले के माध्यम से, भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने एक महत्वपूर्ण संदेश दिया है कि प्रेम और सहमति पर आधारित रिश्तों को समझने और उनकी गरिमा का सम्मान करना अत्यंत आवश्यक है। यदि कोई संबंध टूटता है, तो यह न्यायालय का कार्य नहीं है कि इसे लड़ाई में तब्दील करे। इस प्रकार के मामलों में न्याय व्यवस्था को बोझ और आरोपियों की सामाजिक छवि को नुकसान उत्पन्न करने से बचना चाहिए।

अंततः, हमें यह समझना चाहिए कि रिश्ते व्यक्तिगत और जटिल होते हैं, और इनका निपटारा बातचीत और समझौते के माध्यम से किया जाना चाहिए। अदालतों का दखल असामान्य होना चाहिए जब तक कि स्पष्ट धोखाधड़ी का मामला न हो।

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