ईशा फाउंडेशन केस- SC का पॉल्यूशन बोर्ड से सवाल:कैसे कह सकते हैं कि योग सेंटर शैक्षणिक संस्थान नहीं; देर से आना संदेह पैदा करता है

सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को ईशा फाउंडेशन केस से जुड़ी याचिका पर सुनवाई की। यह याचिका तमिलनाडु पॉल्यूशन कंट्रोल बोर्ड की तरफ से लगाई गई है। याचिकाकर्ता की मांग है कि, दिसंबर 2022 में मद्रास हाईकोर्ट ने ईशा फाउंडेशन को जारी कारण बताओ नोटिस को रद्द करने का आदेश दिया था। इस आदेश पर रोक लगाई जाए। जस्टिस सूर्यकांत और एन कोटिश्वर सिंह की बेंच ने सुनवाई करते हुए कहा कि, आप कैसे कह सकते हैं कि योग सेंटर शैक्षणिक संस्थान नहीं है? जब राज्य दो साल बाद अदालत का दरवाजा खटखटाता है, तो हमें संदेह होता है। मामला कोयंबटूर के वेल्लियांगिरी पहाड़ियों पर बने ईशा फाउंडेशन योग सेंटर से जुड़ा है। तमिलनाडु सरकार ने पॉल्यूशन क्लियरेंस लिए बिना कंस्ट्रक्शन करने के लिए ईशा फाउंडेशन को 19 नवंबर 2021 को कारण बताओ नोटिस जारी किया था। 2021 में हाईकोर्ट में केस पहुंचा....3 पक्ष कारण बताओ नोटिस के खिलाफ ईशा फाउंडेशन मद्रास हाई कोर्ट पहुंचा। इस केस में तीन पक्ष बनाए गए... पहला पक्ष: ईशा फाउंडेशन- 3 तर्क दूसरा पक्ष: राज्य सरकार- एक दलील राज्य सरकार ने इस तर्क का विरोध किया कि ईशा फाउंडेशन 'शैक्षणिक संस्थानों' के दायरे में आता है। हालांकि, राज्य सरकार ने फिर भी कहा कि, अगर मान लें कि यह एक शैक्षणिक संस्थान है। तो यह नियम सिर्फ 10,000 वर्ग मीटर के दायरे में लागू होगा जबकि योग सेंटर 2 लाख वर्ग मीटर में फैला है। तीसरा पक्ष: केंद्र सरकार- 2 तर्क मद्रास हाईकोर्ट का आदेश क्या था 2022 में, हाईकोर्ट ने विवादित कारण बताओ नोटिस को यह कहते हुए खारिज कर दिया कि चूंकि फाउंडेशन समूह योग को बढ़ावा देने के लिए निर्माण कार्य कर रहा था, इसलिए यह एक "शैक्षणिक संस्थान" की परिभाषा के अंतर्गत आता है। सुनवाई के दौरान, हाई कोर्ट ने केंद्र सरकार से पूछा कि आखिर वह कानून क्यों बना रही है जब खुद ही छूट देनी पड़ती है। अपने पक्ष का बचाव करते हुए, केंद्र ने कहा कि यह संतुलन बनाने और उत्पीड़न को रोकने के लिए था। ईशा फाउंडेशन से जुड़ी ये खबर भी पढ़ें... ईशा फाउंडेशन के खिलाफ जांच पर सुप्रीम कोर्ट की रोक: कहा- पुलिस आगे एक्शन न ले सुप्रीम कोर्ट ने नवंबर 2024 को ईशा फाउंडेशन के खिलाफ पुलिस जांच के आदेश पर रोक लगा दी थी। फाउंडेशन के खिलाफ रिटायर्ड प्रोफेसर एस कामराज ने मद्रास हाईकोर्ट में याचिका लगाई थी। आरोप था कि आश्रम में उनकी बेटियों लता और गीता को बंधक बनाकर रखा गया है। पढ़ें पूरी खबर...

ईशा फाउंडेशन केस- SC का पॉल्यूशन बोर्ड से सवाल:कैसे कह सकते हैं कि योग सेंटर शैक्षणिक संस्थान नहीं; देर से आना संदेह पैदा करता है
सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को ईशा फाउंडेशन केस से जुड़ी याचिका पर सुनवाई की। यह याचिका तमिलनाडु पॉ�

ईशा फाउंडेशन केस: SC का पॉल्यूशन बोर्ड से सवाल

हाल ही में सुप्रीम कोर्ट ने ईशा फाउंडेशन के मामले में पॉल्यूशन कंट्रोल बोर्ड से कुछ महत्वपूर्ण सवाल उठाए हैं। सर्वोच्च अदालत ने यह पूछा है कि कैसे यह कहा जा सकता है कि योग सेंटर को शैक्षणिक संस्थान नहीं माना जा सकता। यह मामला अब चर्चा का विषय बन गया है और इसके कई पहलू हैं जो समझने की जरूरत है।

योग सेंटर का महत्व

योग और ध्यान के केंद्र देश भर में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहे हैं। ये न केवल शरीर और मन के लिए फायदेमंद हैं, बल्कि कई सामाजिक एवं शैक्षणिक पहलुओं को भी समाहित करते हैं। ऐसे में, क्या इन्हें शैक्षणिक संस्थानों की श्रेणी से बाहर किया जा सकता है? सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणियां इस बात पर प्रकाश डालती हैं कि योग केंद्रों का महत्व बहुत बढ़ गया है।

पॉल्यूशन बोर्ड का दृष्टिकोण

पॉल्यूशन कंट्रोल बोर्ड ने योग केंद्रों को लेकर कुछ आपत्तियां उठाई थीं, जिसके तहत ये अदालती प्रक्रिया में शामिल हुए हैं। अदालती सुनवाई के दौरान, कोर्ट ने यह जानना चाहा कि उनकी राय पर आधारित कौन से तथ्यों को ध्यान में रखा गया। यदि कोई योग सेंटर उल्लेखनीय संख्या में लोगों को शिक्षित कर रहा है, तो क्या वह शैक्षणिक संस्थान के तौर पर मान्यता नहीं रखता?

प्रश्नों का निपटारा

सुप्रीम कोर्ट ने यह भी सुझाव दिया कि देर से आना हमेशा संदेह पैदा करता है। पॉल्यूशन बोर्ड द्वारा समय पर पेश नहीं होने से कई सवाल उठते हैं, जो सुनवाई की गंभीरता को प्रभावित करते हैं। अदालत ने इस पर जोर दिया कि नियामक संस्थाओं को समय पर और सटीक जानकारी प्रस्तुत करनी चाहिए, ताकि निर्णय प्रक्रिया सुगम हो सके।

निष्कर्ष

ईशा फाउंडेशन के मामले में सुप्रीम कोर्ट के प्रश्न ने योग केंद्रों के महत्व को फिर से एक बार साबित किया है। इस प्रकार की सुनवाई समाज में योग और ध्यान संस्कृति के स्थान को उजागर करती है। सभी को यह समझना चाहिए कि योग को केवल एक शारीरिक अभ्यास के रूप में नहीं देखा जाना चाहिए, बल्कि उसे एक शिक्षा और जागरूकता का माध्यम माना जाना चाहिए।

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