हर साल 17 गांवों को उजाड़ता है मानसून, आपदा में करोड़ों की संपत्ति का नुकसान
तबाही लेकर आ रहा मानसून…आपदा में उजड़ जाते हैं हर साल 17 गांव, करोड़ों की संपत्ति का नुकसान उत्तराखंड में 2012 से अब तक आई प्राकृतिक आपदा में 2629 परिवारों पुनर्वास-विस्थापन करना पड़ा। आपदा ने लोगों के हंसते खेलते परिवार उजाड़ दिए। लोगों ने अपने परिवार और रोजगार खो दिए। उत्तराखंड राज्य में मानसून हर […] The post हर साल 17 गांवों को उजाड़ता है मानसून, आपदा में करोड़ों की संपत्ति का नुकसान appeared first on The Lifeline Today : हिंदी न्यूज़ पोर्टल.

हर साल 17 गांवों को उजाड़ता है मानसून, आपदा में करोड़ों की संपत्ति का नुकसान
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लेखिका: सुमिता वर्मा, काजल शर्मा, टीम धार्मयुद्ध
उत्तराखंड के गांवों पर मानसून की मार
उत्तराखंड राज्य में हर साल मानसून सैलाब लेकर आता है। यह न केवल मानव जीवन को प्रभावित करता है, बल्कि यहां की संपत्तियों को भी व्यापक नुकसान पहुंचाता है। 2012 से लेकर अब तक के पिछले 14 वर्षों में, राज्य में मौसम की बेरुखी ने 2629 परिवारों को पुनर्वास और विस्थापन के लिए मजबूर कर दिया। हाल ही में, यह खुलासा हुआ है कि लगभग 17 गांव हर साल आपदा का शिकार बनते हैं, जिससे करोड़ों की संपत्ति का नुकसान होता है।
आपदा का आंकड़ा
प्राकृतिक आपदाओं के इस कहर में, पिछले 14 वर्षों में 245 गांव पूरी तरह से उजड़ चुके हैं। इसका मतलब है कि औसतन हर साल लगभग 17 गांव तबाही का शिकार बनते हैं। अब यह सवाल उठता है कि कैसे सरकार इन प्रभावित क्षेत्रों के पुनर्वास और विस्थापन पर कार्य कर रही है।
सरकार की पहल
सरकार ने ऐसी स्थितियों में विस्थापित हुए लोगों की मदद के लिए कई योजनाएं बनाई हैं। हालात का मुकाबला करते हुए, संबंधित विभाग ने 2629 परिवारों को संबोधित किया है। वित्तीय वर्ष 2025-26 में आपदा सहायता के तहत 20 करोड़ रुपये का बजटीय प्रावधान किया गया था, जिसमें से 11.44 करोड़ रुपये अब तक जारी किए जा चुके हैं।
राहत शिविरों की आवश्यकता
अतीत में, केदारनाथ यात्रा मार्गों पर ज्यादा बारिश के चलते कई भूस्खलनों के कारण यात्रियों को सुरक्षित स्थान पर शिफ्ट किया गया। जुलाई 2024 में चंपावत जिले में भी इसी तरह की स्थिति उत्पन्न हुई, जिसमें 193 परिवारों को राहत शिविरों में स्थानांतरित किया गया। ऐसे उदाहरण यह साबित करते हैं कि आपदा प्रबंधन प्रणाली में सुधार की बहुत आवश्यकता है।
भविष्य की अनिश्चितता
जहां एक ओर सरकारें राहत एवं पुनर्वास की प्रक्रिया को प्राथमिकता दे रही हैं, वहां दूसरी ओर, स्थानीय लोगों की स्थिरता का सवाल भी महत्त्वपूर्ण है। क्या यह उपाय पर्याप्त हैं? क्या प्रतिवर्ष होने वाली आपदाओं से निपटने के लायक हैं? यदि ये सवाल अनुत्तरित रह जाते हैं, तो भविष्य में और गांव उजड़ सकते हैं।
निष्कर्ष
आपदा और पुनर्वास की प्रक्रिया में लाखों रुपये खर्च होते हैं, फिर भी नुकसान की भरपाई नहीं हो पाती। आवश्यक है कि सरकार और स्थानीय प्रशासन, आपदा प्रबंधन योजनाओं को मजबूती प्रदान करें। साथ ही, लोगों को भी एक लंबी अवधि की योजना बनानी होगी ताकि वे इस तरह की आपदाओं से निपट सकें।
अंत में, लोगों की जिंदगी की सुरक्षा और संपत्ति की रक्षा एक प्राथमिकता होनी चाहिए। भविष्य में यह सुनिश्चित करने के लिए कि गांवों को हर साल उजाड़ने से रोका जा सके, सभी को मिलकर प्रयास करना होगा।