हाईकोर्ट ने पलटा ट्रायल कोर्ट का फैसला: जमीन विवाद में घायल की मौत के मामले में आरोपी दोषमुक्त, 18 साल पहले हुई थी 10 साल की सजा
वीरेन्द्र गहवई, बिलासपुर। हाईकोर्ट ने एक अहम फैसले में जमीन विवाद के दौरान हुई झड़प में घायल व्यक्ति की 10

हाईकोर्ट ने पलटा ट्रायल कोर्ट का फैसला: जमीन विवाद में घायल की मौत के मामले में आरोपी दोषमुक्त, 18 साल पहले हुई थी 10 साल की सजा
वीरेन्द्र गहवई, बिलासपुर। हाईकोर्ट ने एक अहम फैसले में जमीन विवाद के दौरान हुई झड़प में घायल व्यक्ति की 10 दिन बाद मौत के मामले में आरोपी को दोषमुक्त कर दिया है। ट्रायल कोर्ट ने इस मामले में आरोपी को गैर इरादतन हत्या के तहत 10 वर्ष की सजा सुनाई थी। बता दें कि ट्रायल कोर्ट ने आरोपी को 2007 में 10 साल कैद की सजा सुनाई थी।

यह है मामला
सरगुजा के राजपुर थाने के ग्राम कोदू निवासी सेंदला का गांव के ही व्यक्ति धन्नू के साथ जमीन बंटवारे को लेकर 22 मार्च 2006 को झगड़ा हुआ था। गांव के ही कुछ लोगों ने बीच बचाव की कोशिश की। इसी दौरान आरोपी सेदला ने धन्नू के खिलाफ अपशब्द कहे और उसके सिर पर लकड़ी के डंडे से हमला किया। सिर में गंभीर चोट आने वह बेहोश हो गया। उसे अस्पताल में भर्ती कराया गया। इसके बाद परिजन उसे घर ले आए, जहां 31 मार्च 2006 को उसकी मौत हो गई। पुलिस ने मामले में पोस्टमार्टम के बाद धारा 302 के तहत जुर्म दर्ज कर ट्रायल कोर्ट में चालान प्रस्तुत किया।
विचारण न्यायालय (ट्रायल कोर्ट) ने 18 सितंबर 2007 को आरोपी को धारा 304 भाग 2 में 10 वर्ष कैद की सजा सुनाई। सजा के खिलाफ आरोपी ने हाईकोर्ट में अपील प्रस्तुत की। अपील में कहा गया कि गवाहों ने अभियोजन पक्ष के मामले का समर्थन नहीं किया है और अपने बयान से पलट गए हैं। गवाहों के बयानों में भी महत्वपूर्ण चूक और विरोधाभास है। पीएम करने वाले डॉक्टर ने गवाही में कहा कि-मैंने मृतक को बेहतर उपचार के लिए रेफर किया था। लेकिन मृतक के परिवार के सदस्य उसे जल्दी छुट्टी दिलाकर घर ले गए। इससे घायल को उचित उपचार नहीं मिल सका और उसके बाद उसकी मृत्यु हो गई।
अपील में यह तर्क भी दिया गया कि यह घटना अचानक झगड़े के कारण हुई। अपीलकर्ता का धन्नू को मारने का कोई इरादा नहीं था। धन्नू शराब के नशे में अपीलकर्ता के घर आया और उसकी मां को पीटना शुरू कर दिया। उसने हस्तक्षेप करते हुए रोका और छीना-झपटी में उसके सिर पर चोटें आईं और बाद में उसकी मृत्यु हो गई। हाईकोर्ट ने तर्कों पर सहमति जताई, और आरोपी को दोषमुक्त कर दिया है। इस मामले में न्यायालय ने स्पष्ट किया कि कानून व्यवस्था में सच्चाई का पक्ष रखना बहुत महत्वपूर्ण है और किसी भी मामले की सही जांच करना न्यायपालिका की प्राथमिकता होनी चाहिए।
निष्कर्ष
इस फैसले ने न्याय के लिए लम्बी अवधि का प्रतीक पेश किया है और यह स्पष्ट करता है कि अगर न्यायालय के पास पर्याप्त प्रमाण नहीं होते, तो किसी व्यक्ति को दोषी ठहराना उचित नहीं है। न्यायपालिका में भरोसा अत्यंत महत्वपूर्ण है और इसे बनाए रखना सभी के लिए उपयुक्त है।
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लेख का उद्देश्य पाठकों को इस जघन्य मामले में उठाए गए कानूनी कदमों और कोर्ट के फैसले के महत्व के बारे में सूचित करना है।